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टेक लगा कर बैठा हूँ मैं जिस बूढ़ी दीवार के साथ - ज़ुल्फ़िकार नक़वी कविता - Darsaal

टेक लगा कर बैठा हूँ मैं जिस बूढ़ी दीवार के साथ

टेक लगा कर बैठा हूँ मैं जिस बूढ़ी दीवार के साथ

ख़ौफ़ है मुझ को मिट न जाऊँ उस के हर आसार के साथ

ग़ाज़ा पाउडर मल कर मैं भी आ जाता हूँ सुर्ख़ी में

बिक जाता है चेहरा मेरा सस्ते से अख़बार के साथ

क्यूँ न बढ़ कर मैं पी जाऊँ तेरे नक़ली सब तिरयाक

फिर तू धोका कर न पाए बस्ती में बीमार के साथ

होश के नाख़ुन ले तो साईं क्यूँ ये ग़ौग़ा डाला है

देख नहीं अब लय ये चलती नग़्मा-ए-दरबार के साथ

किस ने तुझ को सौंपी भाई सरदारी इस बस्ती की

सब के सब महशूर ये होंगे अपने अपने यार के साथ

उम्र तमामी शौक़ से हम ने एक ही तितली पाली थी

जब जब उस को ख़्वाब में देखा उड़ती है अग़्यार के साथ

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