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मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख - ज़ुल्फ़िकार नक़वी कविता - Darsaal

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

मुझे ज़मान-ओ-मकाँ की हुदूद में न रख

सदा-ओ-सौत की अंधी क़ुयूद में न रख

मैं तेरे हर्फ़-ए-दुआ से भी मावरा हूँ मियाँ

मुझे तू अपने सलाम-ओ-दुरूद में न रख

कलीम-ए-वक़्त के दर को जबीं तरसती है

अमीर-ए-शहर के बेकल सुजूद में न रख

निज़ाम-ए-क़ैसर-ओ-किस्रा की मैं रवानी हूँ

वजूब-ए-ऐन हूँ साहब शुहूद में न रख

बिछा यक़ीं का मुसल्ला दरून-ए-हस्ती में

नियाज़-ओ-राज़ के क़िस्से नुमूद में न रख

पस-ए-वजूद जहाँ मेरी ख़ाक ही तो है

रुमूज़-ए-हस्ती-ए-दौराँ वरूद में न रख

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Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh In Hindi By Famous Poet Zulfiqar Naqvi. Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh is written by Zulfiqar Naqvi. Complete Poem Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh in Hindi by Zulfiqar Naqvi. Download free Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh Poem for Youth in PDF. Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh is a Poem on Inspiration for young students. Share Mujhe Zaman-o-makan Ki Hudud Mein Na Rakh with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.