Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_efbc1ebda43b60a8d1252aafcc8a07fb, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे - ज़ुल्फ़िकार नक़वी कविता - Darsaal

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

कूज़ा-गर देख अगर चाक पे आना है मुझे

फिर तिरे हाथ से हर चाक सिलाना है मुझे

बाँध रक्खे हैं मिरे पाँव में घुँगरू किस ने

अपनी सुर-ताल पे अब किस ने नचाना है मुझे

रात-भर देखता आया हूँ चराग़ों का धुआँ

सुब्ह-ए-आशूर से अब आँख मिलाना है मुझे

हाथ उट्ठे न कोई अब के दुआ की ख़ातिर

एक दीवार पस-ए-दार बनाना है मुझे

सर बचे या न बचे तेरे ज़ियाँ-ख़ाने में

अपनी दस्तार बहर-तौर बचाना है मुझे

छोड़ आया हूँ दर-ए-दिल पे मैं आँखें अपनी

अब ज़रा जाए जो कहता था कि जाना है मुझे

(1277) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe In Hindi By Famous Poet Zulfiqar Naqvi. Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe is written by Zulfiqar Naqvi. Complete Poem Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe in Hindi by Zulfiqar Naqvi. Download free Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe Poem for Youth in PDF. Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe is a Poem on Inspiration for young students. Share Kuza-gar Dekh Agar Chaak Pe Aana Hai Mujhe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.