ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप
ख़ामोश ज़मज़मे हैं मिरा हर्फ़-ए-ज़ार चुप
हर इख़्तियार चुप है हर इक ए'तिबार चुप
बाद-ए-सुमूम दरपय आज़ार देख कर
सकते में बे-क़रार है बाद-ए-बहार चुप
मंज़र नहीं हैं बोलते सहरा उदास है
पथरा गई है आँख दिल-ए-दाग़दार चुप
जो कुछ भी हो रहा है ये मक़्सूम तो नहीं
बस तुझ को खा गई है तिरी सोगवार चुप
हर एक को हूँ गोश-बर-आवाज़ देखता
ओढ़े हुए हों जब से मैं इक बा-वक़ार चुप
हर्फ़-ए-दुआ न दस्त-ए-तलब दर पे आन कर
लब पर फ़क़त है रक़्स में इक दिल-फ़िगार चुप
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