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बाल बाल दुनिया पर उस का ही इजारा है - ज़ुल्फ़िकार नक़वी कविता - Darsaal

बाल बाल दुनिया पर उस का ही इजारा है

बाल बाल दुनिया पर उस का ही इजारा है

वक़्त ख़ाली हाथों से हम ने भी गुज़ारा है

कू-ब-कू बरसता है यम-ब-यम उबलता है

ख़ून-ए-आदमियत से नक़्श ला सँवारा है

ले चलो चराग़ों को कर के ख़ून से रौशन

दश्त की सियाही ने हम को भी पुकारा है

ज़ाद-ए-राह का हम से क्यूँ सवाल करते हो

रहज़नों के नर्ग़े में जब हमें उतारा है

हर-नफ़स क़फ़स में हों कैसे मान लूँ 'नक़वी'

अब खुली फ़ज़ाएँ हैं आसमाँ हमारा है

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