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वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है - ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी कविता - Darsaal

वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है

वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है

मैं कहता हूँ कि मैं ज़िंदा रहा क्यूँकर तअ'ज्जुब है

मिरा अफ़्साना-ए-इश्क़ एक आलम है तहय्युर का

मुझे कह कर तअ'ज्जुब है उन्हें सुन कर तअ'ज्जुब है

मिरी दो-चार उम्मीदें बर आई थीं जवानी में

मिरे अल्लाह इतनी बात पर महशर तअ'ज्जुब है

हमीं हैं इश्क़ को जो शग़्ल-ए-बेकारी समझते हैं

हमारी ही समझ पर पड़ गए पत्थर तअ'ज्जुब है

वफ़ादारी हुई है इस तरह मफ़क़ूद दुनिया से

कि ख़ुद मुझ को यहाँ तक कर गुज़रने पर तअ'ज्जुब है

मिरे अहबाब को हैरत है मैं ने आज क्यूँ पी ली

नहीं क्यूँ आज तक पी थी मुझे इस पर तअ'ज्जुब है

'बुख़ारी' तुम जवाँ हो और जवानी एक नश्शा है

तुम्हारी दास्तान-ए-ग़म मुझे सुन कर तअ'ज्जुब है

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