ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है
ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है
ख़राबी कुछ न कुछ तो इस की ख़ाक ओ बाद में है
पहुँच कर उस जगह इक चुप सी लग जाती है मुझ को
मक़ाम इक इस तरह का भी मिरी रूदाद में है
अजब इक बे-कली सी मेरे जिस्म-ओ-जान में है
सिफ़त सीमाब की मुझ पैकर-ए-अज़दाद में है
ये शीशा-घर अभी तक अर्सा-ए-तकमील में है
ये ख़्वाब-ए-ख़ूबसूरत मोरिज़-ए-ईजाद में है
मैं जितना उठ रहा हूँ और झुकता जा रहा हूँ
कजी दर-अस्ल अव्वल से मिरी बुनियाद में है
ज़माना यूँ नहीं जैसे दिखाई दे रहा है
ख़राबी कोई माह-ओ-साल की तादाद में है
तरीक़-ए-इश्क़ में कोई ख़राबी आ गई है
कोई बद-सूरती इस तर्ज़-ए-नौ-ईजाद में है
ये नक़्श-ए-ख़ुशनुमा दर-अस्ल नक़्श-ए-आजिज़ी है
कि अस्ल-ए-हुस्न तो अंदेशा-ए-बहज़ाद में है
यहाँ जो आ गया इक बार फिर जाता नहीं है
कशिश ऐसी कुछ इस शहर-ए-सितम-ईजाद में है
वो जो कहते रहे उस की गवाही मिल रही है
ये सारी गुफ़्तुगू उन रफ़्तगाँ की याद में है
ये जितना है कहीं उस से ज़ियादा भेद में है
तिलिस्म इस दहर का पोशीदा हफ़्त-इब'आद में है
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