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नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है - ज़ुल्फ़िक़ार अहमद ताबिश कविता - Darsaal

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है

या नदी के पार उतरना अच्छा है

दस्तक सी इक दिल के बंद किवाड़ों पर

चुपके चुपके सुनते रहना अच्छा है

यूँही घर में चुप और गुम-सुम रहने से

गलियों गलियों घूमते फिरना अच्छा है

जिन लोगों की याद से आँखें भर आएँ

उन लोगों को याद न करना अच्छा है

साँझ हुए जब आँगन जागने लगते हैं

दिल में याद के दिए जलाना अच्छा है

जी के रोग की जब कोई न बात सुने

दीवारों से बातें करना अच्छा है

जब आँखों में दिल की उदासी रंग भरे

आप ही अपनी हँसी उड़ाना अच्छा है

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