रवानी में नज़र आता है जो भी
उसे तस्लीम कर लेते हैं पानी
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कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
बैठे बैठे इसी ग़ुबार के साथ
यूँ उठे इक दिन कि लोगों को हुआ
हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी
मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए
किसी का ख़्वाब किसी का क़यास है दुनिया
ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना
'आदिल' सजे हुए हैं सभी ख़्वाब ख़्वान पर
दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की