दश्त-ओ-दरिया की इब्तिदा से हैं
हम वही तीन दिन के प्यासे हैं
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1182) Peoples Rate This
यूँ जो पलकों को मिला कर नहीं देखा जाता
पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
ये किस ने हात पेशानी पे रक्खा
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
रात गुज़री न कम सितारे हुए
सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है
ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत
वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है