'आदिल' सजे हुए हैं सभी ख़्वाब ख़्वान पर
और इंतिज़ार-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कर रहे हैं हम
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
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Ahmad Faraz
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mir Taqi Mir
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ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं
पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
ये किस ने हात पेशानी पे रक्खा
हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए
इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं
सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत
रवानी में नज़र आता है जो भी
रात गुज़री न कम सितारे हुए
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी