पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
नादीदा दोस्तों का पता कर रहे हैं हम
दिल से गुज़र रहा है कोई मातमी जुलूस
और इस के रास्ते को खुला कर रहे हैं हम
इक ऐसे शहर में हैं जहाँ कुछ नहीं बचा
लेकिन इक ऐसे शहर में क्या कर रहे हैं हम
पलकें झपक झपक के उड़ाते हैं नींद को
सोए हुओं का क़र्ज़ अदा कर रहे हैं हम
कब से खड़े हुए हैं किसी घर के सामने
कब से इक और घर का पता कर रहे हैं हम
अब तक कोई भी तीर तराज़ू नहीं हुआ
तब्दील अपने दिल की जगह कर रहे हैं हम
हाथों के इर्तिआश में बाद-ए-मुराद है
चलती हैं कश्तियाँ कि दुआ कर रहे हैं हम
वापस पलट रहे हैं अज़ल की तलाश में
मंसूख़ आप अपना लिखा कर रहे हैं हम
'आदिल' सजे हुए हैं सभी ख़्वाब ख़्वान पर
और इंतिज़ार-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कर रहे हैं हम
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