मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
काटी नहीं वो फ़स्ल जिसे बो के ख़ुश हुआ
वो रंज था कि रंज न करना मुहाल था
आख़िर में एक शाम बहुत रो के ख़ुश हुआ
साहब वो बू गई न वो नश्शा हवा हुआ
अपने तईं मैं जाम-ओ-सुबू धो के ख़ुश हुआ
ऐसी ख़ुशी के ख़्वाब से जागा कि आज तक
ख़ुश हो के सो सका न कभी सो के ख़ुश हुआ
छानी इक उम्र ख़ाक ख़ुशी की तलाश में
होना था रिज़्क़-ए-ख़ाक मुझे हो के ख़ुश हुआ
'आदिल' मिरा लिबास ही हम-रंग-ए-दाग़ था
कार-ए-रफ़ू किया न कभी धो के ख़ुश हुआ
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