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मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत - ज़ुल्फ़िक़ार आदिल कविता - Darsaal

मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत

मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत

ऐ ज़मीं माज़रत ऐ ख़ुदा माज़रत

कुछ बताते हुए कुछ छुपाते हुए

मैं हँसा माज़रत रो दिया माज़रत

ख़ुद तुम्हारी जगह जा के देखा है और

ख़ुद से की है तुम्हारी जगह माज़रत

जो हुआ जाने कैसे हुआ क्या ख़बर

जो किया वो नहीं हो सका माज़रत

मैं कि ख़ुद को बचाने की कोशिश में था

एक दिन मैं ने ख़ुद से कहा माज़रत

मुझ से गिर्या मुकम्मल नहीं हो सका

मैं ने दीवार पर लिख दिया माज़रत

मैं बहुत दूर हूँ शाम नज़दीक है

शाम को दो सदा शुक्रिया माज़रत

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