जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं

इश्क़ तो वो है जिस में ना-मौजूद मयस्सर आ जाते हैं

जाने क्या बातें करती हैं दिन भर आपस में दीवारें

दरवाज़े पर क़ुफ़्ल लगा कर हम तो दफ़्तर आ जाते हैं

काम मुकम्मल करने से भी शाम मुकम्मल कब होती है

एक परिंदा रह जाता है बाक़ी सब घर आ जाते हैं

अपने दिल में गेंद छुपा कर उन में शामिल हो जाता हूँ

ढूँडते ढूँडते सारे बच्चे मेरे अंदर आ जाते हैं

मीम मोहब्बत पढ़ते पढ़ते लिखते लिखते काफ़ कहानी

बैठे बैठे इस मकतब में ख़ाक बराबर आ जाते हैं

रोज़ निकल जाते हैं ख़ाली घर से ख़ाली दिल को ले कर

और अपनी ख़ाली तुर्बत पर फूल सजा कर आ जाते हैं

ख़ाक में उँगली फेरते रहना नक़्श बनाना वहशत लिखना

इन वक़्तों के चंद निशाँ अब भी कूज़ों पर आ जाते हैं

नाम किसी का रटते रटते एक गिरह सी पड़ जाती है

जिन का कोई नाम नहीं वो लोग ज़बाँ पर आ जाते हैं

फिर बिस्तर से उठने की भी मोहलत कब मिलती है 'आदिल'

नींद में आती हैं आवाज़ें ख़्वाब में लश्कर आ जाते हैं

(1329) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain In Hindi By Famous Poet Zulfiqar Aadil. Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain is written by Zulfiqar Aadil. Complete Poem Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain in Hindi by Zulfiqar Aadil. Download free Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain Poem for Youth in PDF. Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Jaane Hum Ye Kin Galiyon Mein KHak UDa Kar Aa Jate Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.