ज़ुल्फ़िक़ार आदिल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
नाम | ज़ुल्फ़िक़ार आदिल |
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अंग्रेज़ी नाम | Zulfiqar Aadil |
जन्म की तारीख | 1972 |
यूँ उठे इक दिन कि लोगों को हुआ
ये किस ने हात पेशानी पे रक्खा
रवानी में नज़र आता है जो भी
दश्त-ओ-दरिया की इब्तिदा से हैं
बैठे बैठे इसी ग़ुबार के साथ
'आदिल' सजे हुए हैं सभी ख़्वाब ख़्वान पर
यूँ जो पलकों को मिला कर नहीं देखा जाता
ये रास्ते में जो शब खड़ी है हटा रहा हूँ मुआफ़ करना
ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं
वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है
सुनते हैं जो हम दश्त में पानी की कहानी
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है
शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
सहराओं के दोस्त थे हम ख़ुद-आराई से ख़त्म हुए
सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है
रात गुज़री न कम सितारे हुए
पेड़ों से बात-चीत ज़रा कर रहे हैं हम
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में
मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत
कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है
किसी का ख़्वाब किसी का क़यास है दुनिया
कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा
जाने हम ये किन गलियों में ख़ाक उड़ा कर आ जाते हैं
हम जाना चाहते थे जिधर भी नहीं गए
हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी
हमें यूँही न सर-ए-आब-ओ-गिल बनाया जाए
इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं