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रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी - ज़ुहूर नज़र कविता - Darsaal

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

तुम ने हमें दीवाना किया है ऐसी तो कोई बात न थी

अब ये तुम्हारा काम कि जानो हम परवाने थे या दीप

दिन बीता तो जलते जलते जलते जलते रात कटी

गुलशन गुलशन महफ़िल महफ़िल एक ही क़िस्सा एक ही बात

ज़ालिम दुनिया जाबिर दुनिया जाने ये कब बदलेगी

लपके कितने हाथ न जाने उन के सजीले दामन पर

कल तक थे हम चाक-गरेबाँ उन से पूछे आज कोई

हम हैं मशअ'ल वाले पहले हम से दो दो हाथ करो

फिर बिखरा लेना अँधियारा नगर नगर बस्ती बस्ती

तुम हो आग तो हम पानी हैं तुम हो धूप तो हम छाँव

अपना तुम्हारा साथ ही क्या हम प्रजा तुम राजा जी

गली गली में ख़ून के धब्बे डगर डगर पे राख के ढेर

जश्न मनाने वाले यारो एक 'नज़र' इस जानिब भी

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