बादा-कश हूँ न पारसा हूँ मैं

बादा-कश हूँ न पारसा हूँ मैं

कोई समझाए मुझ को क्या हूँ मैं

रात बिखरे हुए सितारों को

दिन की बातें सुना रहा हूँ मैं

मेरे दिल में हैं ग़म ज़माने के

सारी दुनिया का माजरा हूँ मैं

शेर अच्छे बुरे हों मेरे हैं

ज़ेहन से अपने सोचता हूँ मैं

कोई मंज़िल नहीं मिरी मंज़िल

किस दोराहे पे आ गया हूँ मैं

यूँ गिरा हूँ कि उठ नहीं सकता

शायद अपना ही नक़्श-ए-पा हूँ मैं

उन का अफ़्साना कहते कहते 'ज़ुहैर'

अपनी रूदाद कह गया हूँ मैं

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