रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुई
और फिर एक और फिर एक और आहट सी हुई
Gulzar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
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Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ
उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना
चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा
फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ
क़मर-गज़ीदा नज़र से हाला कहाँ से आया
तिलस्माती फ़ज़ा तख़्त-ए-सुलैमाँ पर लिए जाना
घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है
जबीं से नाख़ुन-ए-पा तक दिखाई क्यूँ नहीं देता