फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ

फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ

शाख़ काँटों से भरी देखता हूँ

रक़्स-गाहों में बड़े चर्चे हैं

कौन है लाल परी देखता हूँ

चाँद को चाहिए हम-शक्ल अपना

रात-भर दर-बदरी देखता हूँ

लौ मचलती है खुली खिड़की में

रोज़ इक शम्अ' धरी देखता हूँ

मेरे बस में है नहीं क्या चलना

झंडियाँ लाल हरी देखता हूँ

देखता हूँ मैं 'ज़ुबैर' अपनी तरफ़

या जमाल-ए-क़मरी देखता हूँ

(1118) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun In Hindi By Famous Poet Zubair Shifai. Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun is written by Zubair Shifai. Complete Poem Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun in Hindi by Zubair Shifai. Download free Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun Poem for Youth in PDF. Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun is a Poem on Inspiration for young students. Share Fasl Ki Jalwagari Dekhta Hun with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.