वो जिस को दूर से देखा था अजनबी की तरह
कुछ इस अदा से मिला है कि दोस्ताना लगे
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शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में
मुसालहत
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
मनकूहा
अकेले होने का ख़ौफ़
नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं
तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना
ग़ज़ब की धार थी इक साएबाँ साबित न रह पाया
औरतों की आँखों पर काले काले चश्मे थे सब की सब बरहना थीं
जो न इक बार भी चलते हुए मुड़ के देखें
जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
सम्तों का ज़वाल