तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए
वो गुज़रगाह मिरी ज़ात का वीराना था
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तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना
अपनी पहचान के सब रंग मिटा दो न कहीं
दिल को रंजीदा करो आँख को पुर-नम कर लो
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं
नज़्म
हम कहाँ आ गए
अजीब लोग थे ख़ामोश रह के जीते थे