शाम की दहलीज़ पर ठहरी हुई यादें 'ज़ुबैर'
ग़म की मेहराबों के धुँदले आईने चमका गईं
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1481) Peoples Rate This
कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली
बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है
वो जिस को दूर से देखा था अजनबी की तरह
पुराने लोग दरियाओं में नेकी डाल आते थे
सफ़ा और सिद्क़ के बेटे
कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर
सुर्ख़ियाँ अख़बार की गलियों में ग़ुल करती रहीं
भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी
हम बाद-ए-सबा ले के जब घर से निकलते थे
हमारी गर्दिश-ए-पा रास्तों के काम आई
कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं