नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं
वो एक शख़्स जो अक्सर दिखाई देता है
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
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कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं
तब्दीली
वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर-ए-मक़्तल
धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
इक तेरे सिवा
ऐसा क्यूँ होता है
भटक जाती हैं तुम से दूर चेहरों के तआक़ुब में
दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने
गुलाबों के होंटों पे लब रख रहा हूँ
कुत्तों का नौहा
अंजाम क़िस्सा-गो का