कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं
हयात दूर तलक हम से हम-कलाम आई
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तमाम रास्ता फूलों भरा तुम्हारा था
बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो
हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर
जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
सफ़ा और सिद्क़ के बेटे
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
ख़ुर्शीद की बेटी कि जो धूपों में पली है
शरीफ़-ज़ादा
अमीर-ए-शहर की नेकी
ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे
तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए