जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
हवाएँ फिरती हैं चारों तरफ़ धुआँ ले कर
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कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
शाम की दहलीज़ पर ठहरी हुई यादें 'ज़ुबैर'
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं
बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है
ये लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ के टूटते रिश्ते
मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना
भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए