इधर उधर से मुक़ाबिल को यूँ न घाइल कर
वो संग फेंक कि बे-साख़्ता निशाना लगे
Allama Iqbal
Javed Akhtar
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Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
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हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं
नए घरों में न रौज़न थे और न मेहराबें
अलिफ़ ज़बर अ
हम दोनों में कोई न अपने क़ौल-ओ-क़सम का सच्चा था
अकेले होने का ख़ौफ़
छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं
नया जन्म
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
जो न इक बार भी चलते हुए मुड़ के देखें
हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे
अजीब लोग थे ख़ामोश रह के जीते थे