गुलाबों के होंटों पे लब रख रहा हूँ
उसे देर तक सोचना चाहता हूँ
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1398) Peoples Rate This
तिलिस्म-ए-हर्फ़-ओ-हिकायत उसे भी ले डूबा
हम कहाँ आ गए
हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
मैं ने कब बर्क़-ए-तपाँ मौज-ए-बला माँगी थी
ख़ुर्शीद की बेटी कि जो धूपों में पली है
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
शौक़ उर्यां है बहुत जिन के शबिस्तानों में