धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
कोई कहता है अपने हाथ से ये तल्ख़ियाँ रख दो
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रद्द-ए-अमल
दिल के तातार में यादों के अब आहू भी नहीं
शाम होने वाली थी जब वो मुझ से बिछड़ा था ज़िंदगी की राहों में
सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे
हम बाद-ए-सबा ले के जब घर से निकलते थे
सियाह पट्टी
कुत्तों का नौहा
हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
मुसालहत
सम्तों का ज़वाल
नया जन्म
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे