Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_39af87d4b2ff197af12603538dacd30b, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
नया जन्म - ज़ुबैर रिज़वी कविता - Darsaal

नया जन्म

अजनबी जान के इक शख़्स ने यूँ मुझ से कहा

वो मकाँ नीम का वो पेड़ खड़ा है जिस में

खिड़कियाँ जिस की कई साल से लब-बस्ता हैं

जिस के दरवाज़े की ज़ंजीर को हसरत ही रही

कोई आए तो वो हाथों में मचल के रह जाए

शोर-ए-बे-रब्ती-ए-आहंग में ढल के रह जाए

वो मकाँ जिस के दर-ओ-बाम कई सालों से

मुंतज़िर हैं, कोई महताब-सिफ़त शहज़ादा

उन का हर गोशा-ए-तारीक मुनव्वर कर दे

लोग कहते हैं यहाँ रात के सन्नाटे में

कुछ अजब तरह की आवाज़ें हुआ करती हैं

चूड़ियाँ पायलें पाज़ेबें बजा करती हैं

एक आवाज़ कि ''तुम ने तो मुझे चाहा था''

एक आवाज़ कि ''तुम अहद-ए-वफ़ा भूल गए''

एक सिसकी कि ''मिरा साग़र-ए-जम टूट गया''

एक नाला कि ''मिरा मुझ से सनम छूट गया''

लोग कहते हैं कई साल हुए इस घर में

ख़ूब-सूरत सा कोई शख़्स रहा करता था

चाँदनी रातों में अशआर कहा करता था

ख़ूब-रूवों ने उसे जान-ए-वफ़ा जाना था

जाने किस किस ने उसे अपना ख़ुदा माना था

लोग कहते हैं कि इक रात के सन्नाटे में

इक परी आई इधर तख़्त-ए-सुलैमानी पर

जाने किस देस उड़ा ले गई शहज़ादे को

अजनबी जान के उस शख़्स ने यूँ मुझ से कहा

मैं मगर सोच रहा था कि कोई पहचान न ले

(1377) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Naya Janm In Hindi By Famous Poet Zubair Rizvi. Naya Janm is written by Zubair Rizvi. Complete Poem Naya Janm in Hindi by Zubair Rizvi. Download free Naya Janm Poem for Youth in PDF. Naya Janm is a Poem on Inspiration for young students. Share Naya Janm with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.