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दूसरा आदमी - ज़ुबैर रिज़वी कविता - Darsaal

दूसरा आदमी

सुनो आज हम में से किसी को मौत ने ताका

अचानक मर गया कोई

चलो दारू पिएँ दीवार से सर फोड़ के रोएँ

नशा उतरे तो उस की याद में इक मर्सिया लिक्खें

पुराने तज़्किरों में उस के ख़द्द-ओ-ख़ाल को ढूँडें

किताबों के वरक़ उलटें

रिसालों और अख़बारों की पिछली फ़ाइलें खोलें

दिमाग़ ओ दिल के गोशे में छुपी यादें कुरेदें

तल्ख़ियाँ भूलें

फ़रामोशी की सारी गर्द झाड़ें

रंजिशें भूलें

हर इक ख़ूबी हम उस के नाम से मंसूब कर दें

और ऐसे शख़्स को पैकर तराशें

कल जो अपने दरमियाँ ज़िंदा नहीं था

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