शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है

हर इक निगाह का महवर दिखाई देता है

उधर खुली कोई खिड़की न कोई दरवाज़ा

जहाँ से आग का मंज़र दिखाई देता है

चलो कि नीली फ़ज़ाओं में बादबाँ खोलें

सफ़र-नवाज़ समुंदर दिखाई देता है

कटे तो कैसे ये अंधी रिफ़ाक़तों का सफ़र

न कोई चेहरा न मंज़र दिखाई देता है

नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं

वो एक शख़्स जो अक्सर दिखाई देता है

पड़े हैं बंद सभी ज़ीने उन छतों के 'ज़ुबैर'

जहाँ जहाँ से तिरा घर दिखाई देता है

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