पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम

किन राहों से बच कर निकले किस किस से कतराए हम

रात अकेला पा कर ख़ुद को मयख़ाने ले आए हम

पी कर झूमे झूम के नाचे देर तलक लहराए हम

दुनिया वालों ने जीने की शरहें कठिन लगाई थीं

ख़ुश्बू बन कर फैल गए हम बादल बन कर छाए हम

कैसे कैसे रिश्ते जोड़े अजनबियों ने भी हम से

सागर तह से दो इक मोती जब से चुन कर लाए हम

शहर-ए-दिल में रात कोई सौदा-गर बन कर आया था

नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ सौंप के उस को सुब्ह बहुत पछताए हम

तश्बीहों के रंग-महल में कोई न तुझ को जान सका

गीत सुना कर ग़ज़लें कह कर दीवाने कहलाए हम

चंदा जैसा रूप था अपना फूलों जैसी रंगत थी

तेरे ग़म की धूप में जल कर कुमलाए मुरझाए हम

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