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फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए - ज़ुबैर रिज़वी कविता - Darsaal

फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए

फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए

टूटे तअल्लुक़ात की तज्दीद चाहिए

ख़ाली नहीं है एक भी बिस्तर मकान में

इक ख़्वाब देखने के लिए नींद चाहिए

हम माँगते रहे तिरे रुख़्सार ओ लब की ख़ैर

ऐ साहब-ए-जमाल तिरी दीद चाहिए

हम को तो इक रिफ़ाक़त-ए-आशुफ़्ता-सर बहुत

इन को हुजूम-ए-राह की ताईद चाहिए

हर आस्तीं के ख़ून ने क़ातिल बता दिए

शहर-ए-सितम को ज़ुल्म की तरदीद चाहिए

हम पर ज़मीं के राज़ तो सब मुन्कशिफ़ हुए

अब आसमाँ के होने की तम्हीद चाहिए

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