Coupletss of Zubair Rizvi
नाम | ज़ुबैर रिज़वी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zubair Rizvi |
जन्म की तारीख | 1935 |
मौत की तिथि | 2016 |
जन्म स्थान | Delhi |
ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे बहुत नाज़ाँ थी
ये लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ के टूटते रिश्ते
वो जिस को दूर से देखा था अजनबी की तरह
वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर-ए-मक़्तल
तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए
तुम अपने चाँद तारे कहकशाँ चाहे जिसे देना
सुर्ख़ियाँ अख़बार की गलियों में ग़ुल करती रहीं
सुख़न के कुछ तो गुहर मैं भी नज़्र करता चलूँ
शाम की दहलीज़ पर ठहरी हुई यादें 'ज़ुबैर'
पुराने लोग दरियाओं में नेकी डाल आते थे
नज़र न आए तो सौ वहम दिल में आते हैं
नए घरों में न रौज़न थे और न मेहराबें
मैं अपनी दास्ताँ को आख़िर-ए-शब तक तो ले आया
क्यूँ मता-ए-दिल के लुट जाने का कोई ग़म करे
कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाए
कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं
कच्ची दीवारों को पानी की लहर काट गई
जो न इक बार भी चलते हुए मुड़ के देखें
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
इधर उधर से मुक़ाबिल को यूँ न घाइल कर
हम ने पाई है उन अशआर पे भी दाद 'ज़ुबैर'
हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
गुलाबों के होंटों पे लब रख रहा हूँ
ग़ज़ब की धार थी इक साएबाँ साबित न रह पाया
दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने
धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
भटक जाती हैं तुम से दूर चेहरों के तआक़ुब में
औरतों की आँखों पर काले काले चश्मे थे सब की सब बरहना थीं
अपनी ज़ात के सारे ख़ुफ़िया रस्ते उस पर खोल दिए