मैं उस के जाल में आऊँगा देखना 'क़ैसर'
वो मुझ को धोके से घर में बुला के मारेगा
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सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा
शिकस्ता ख़्वाब मिरे आईने में रक्खे हैं
तिरी तस्वीर उठाई हुई है
झुलसती धूप में मुझ को जला के मारेगा
कहीं से आया तुम्हारा ख़याल वैसे ही
ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
तिरा जवाब मिरे काम का नहीं है अब
नज़र नज़र से मिलाओगे मारे जाओगे