तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
चराग़ ख़ुद भी तो जल जल के थक गया होगा
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बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
बस मैं मायूस होने वाला था
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी
कोई तितली निशाने पर नहीं है
वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
आइना कब बनाओगे मुझ को
हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
अपना कंगन समझ रहे हो क्या