शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
ऐसा नहीं तो क्यूँ मुझे दफ़ना रहे हैं लोग
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बस मैं मायूस होने वाला था
आइना कब बनाओगे मुझ को
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
कोई तितली निशाने पर नहीं है
वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया
वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
अब तलक उस को ध्यान हो मेरा