किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
कि तुम आँचल बिछाओगे वो दस्तर-ख़्वान समझेगा
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रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
अपना कंगन समझ रहे हो क्या
आइना कब बनाओगे मुझ को
अब तलक उस को ध्यान हो मेरा
हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है