आज तो दिल के दर्द पर हँस कर
दर्द का दिल दुखा दिया मैं ने
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वो जिस ने आँख अता की है देखने के लिए
रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
पहेली ज़िंदगी की कब तू ऐ नादान समझेगा
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है
एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ
आइना कब बनाओगे मुझ को
पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी