मौजूद कुछ नहीं यहाँ मादूम कुछ नहीं

मौजूद कुछ नहीं यहाँ मादूम कुछ नहीं

ये ज़ीस्त है तो ज़ीस्त का मफ़्हूम कुछ नहीं

मंज़र हिजाब और ही कुछ मंज़रों के हैं

मालूम हम को ये है कि मालूम कुछ नहीं

ख़्वाब-ओ-ख़याल समझें तो मौजूद है जहाँ

कुछ भी सिवाए नुक़्ता-ए-मौहूम कुछ नहीं

हर्फ़-ओ-बयाँ नज़ारे सितारे दिल-ओ-नज़र

हर शय में इंतिशार है मंज़ूम कुछ नहीं

जो मिल गया है, जिस की हमें आरज़ू रही

और जिस से ख़ुद को रक्खा है महरूम कुछ नहीं

जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जीते हैं

पस तय हुआ कि लाज़िम-ओ-मलज़ूम कुछ नहीं

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