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वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए - ज़िया मज़कूर कविता - Darsaal

वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए

वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए

वर्ना मैं आता मशवरे के लिए

तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो

फूल तोड़े थे बेचने के लिए

घंटों ख़ामोश रहना पड़ता है

आप के साथ बोलने के लिए

सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ

चंद बटनों को खोलने के लिए

एक दीवार बाग़ से पहले

इक दुपट्टा खुले गले के लिए

तर्क अपनी फ़लाह कर दी है

और क्या हो मुआशरे के लिए

लोग आयात पढ़ के सोते हैं

आप के ख़्वाब देखने के लिए

अब मैं रस्ते में लेट जाऊँ क्या

जाने वालों को रोकने के लिए

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