फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे
ज़िंदगी देख चुके तुझ को बड़े पर्दे पर
आज के बअ'द कोई फ़िल्म नहीं देखेंगे
मसअला ये है मैं दुश्मन के क़रीं पहुँचूँगा
और कबूतर मिरी तलवार पे आ बैठेंगे
हम को इक बार किनारों से निकल जाने दो
फिर तो सैलाब के पानी की तरह फैलेंगे
तू वो दरिया है अगर जल्दी नहीं की तू ने
ख़ुद समुंदर तुझे मिलने के लिए आएँगे
सेग़ा-ए-राज़ में रक्खेंगे नहीं इश्क़ तिरा
हम तिरे नाम से ख़ुशबू की दुकाँ खोलेंगे
(3184) Peoples Rate This