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तक रहा है तू आसमान में क्या - ज़िया ज़मीर कविता - Darsaal

तक रहा है तू आसमान में क्या

तक रहा है तू आसमान में क्या

है अभी तक किसी उड़ान में क्या

वो जो इक तुझ को जाँ से प्यारा था

अब भी आता है तेरे ध्यान में क्या

क्या नहीं होगी फिर मिरी तकमील

कोई तुझ सा नहीं जहान में क्या

हम तो तेरी कहानी लिख आए

तू ने लिक्खा है इम्तिहान में क्या

हो ही जाते हैं जब जुदा दोनों

फिर तअ'ल्लुक़ है जिस्म-ओ-जान में क्या

हम क़फ़स में हैं उड़ने वाले बता

है वही लुत्फ़ आसमान में क्या

पढ़ रहे हो जो इतनी ग़ौर से तुम

कुछ नया-पन है दास्तान में क्या

उर्दू वाले कमाल दिखते हैं

कोई जादू है इस ज़बान में क्या

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