Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_0d3e1ad0164a59a33fdad2a11e7f9b9d, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम - ज़िया ज़मीर कविता - Darsaal

रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम

रेज़ा रेज़ा तिरे चेहरे पे बिखरती हुई शाम

क़तरा क़तरा मिरी पलकों पे उतरती हुई शाम

लम्हा लम्हा मिरे हाथों से सरकता हुआ दिन

और आसेब-ज़दा दिल में उतरती हुई शाम

सुब्ह का ख़्वाब मगर ख़्वाब अजब जाँ-लेवा

मेरे पहलू में सिसकती हुई मरती हुई शाम

साथ साहिल पे गुज़रते हुए देखी थी कभी

याद है अब भी समुंदर में उतरती हुई शाम

मैं भी तन्हा हूँ तो ये शाम भी तन्हा तन्हा

यानी तन्हाई में कुछ और निखरती हुई शाम

(1306) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham In Hindi By Famous Poet Zia Zameer. Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham is written by Zia Zameer. Complete Poem Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham in Hindi by Zia Zameer. Download free Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham Poem for Youth in PDF. Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham is a Poem on Inspiration for young students. Share Reza Reza Tere Chehre Pe Bikharti Hui Sham with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.