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इतनी शिद्दत से गले मुझ को लगाया हुआ है - ज़िया ज़मीर कविता - Darsaal

इतनी शिद्दत से गले मुझ को लगाया हुआ है

इतनी शिद्दत से गले मुझ को लगाया हुआ है

ऐसा लगता है कि वक़्त आख़िरी आया हुआ है

क्यूँ न इस बात पे हो जाएँ ये आँखें पागल

नींद भी उतरी हुई ख़्वाब भी आया हुआ है

अब के होली पे लगा रंग उतरता ही नहीं

किस ने इस बार हमें रंग लगाया हुआ है

सोचता हूँ कि उसे ख़ुद को मैं इनआ'म करूँ

एक लड़की ने तिरा भेस बनाया हुआ है

आँख में बेटी के आया था मगर देखो 'ज़िया'

एक आँसू ने हमें कितना रुलाया हुआ है

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