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बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने - ज़िया ज़मीर कविता - Darsaal

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

बड़े सलीक़े से तोड़ा मिरा यक़ीन उस ने

कि नाम अपने ही कर ली है सब ज़मीन उस ने

तबाह शहर को पहले किया फिर इस के बअ'द

हमारे शहर में भेजे तमाश-बीन उस ने

निभेगा कैसे तअ'ल्लुक़ समझ नहीं आता

अना की डोर रखी है बहुत महीन उस ने

ख़ुदा बना के हमें पूजने लगा था वो

बहुत ख़राब किया है हमारा दीन उस ने

ज़हीन लड़की है वो जिस के इश्क़ में हम हैं

बना दिया है हमें भी बहुत ज़हीन उस ने

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