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आख़िरश कर लिया क़ुबूल हमें - ज़िया ज़मीर कविता - Darsaal

आख़िरश कर लिया क़ुबूल हमें

आख़िरश कर लिया क़ुबूल हमें

उस ने भेजे हैं लाल फूल हमें

एक लड़की का ख़्वाब हैं हम भी

कोई समझे नहीं फ़ुज़ूल हमें

इस क़दर याद कर रहे हो तुम

यानी जाओगे तुम भी भूल हमें

हम हैं ख़ुशबू हवा के दोश पे हैं

जल्द कर लीजिए वसूल हमें

मुख़्तसर कीजिए कहानी को

आप तो दे रहे हैं तूल हमें

राह तेरी नहीं तकेंगे हम

शर्त ये भी तिरी क़ुबूल हमें

और कुछ रंग शेर में आए

ज़िंदगी और कर मलूल हमें

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