क़तरा क़तरा छत से ही रिसने लगी
धूप का रस्ता न था दीवार में
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(999) Peoples Rate This
किसी सफ़र किसी अस्बाब से इलाक़ा नहीं
तुग़्यानी से डर जाता हूँ
रिफ़ाक़त की ये ख़्वाहिश कह रही है
मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ
न थीं तो दूर कहीं ध्यान में पड़ी हुई थीं
सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ
कहीं ये लम्हा-ए-मौजूद वाहिमा ही न हो
थोड़ी सी बारिश होती है
समझ पाया नहीं पर सुन रहा हूँ
हम अपने आप से भी हम-सुख़न न होते थे