मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ
फ़ासला तय नई दीवार उठाने से हुआ
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(795) Peoples Rate This
किवाड़ खुलने से पहले ही दिन निकल आया
रिफ़ाक़त की ये ख़्वाहिश कह रही है
किसी सफ़र किसी अस्बाब से इलाक़ा नहीं
फिर उसी धुन में उसी ध्यान में आ जाता हूँ
आवाज़ों में बहते बहते
थोड़ी सी बारिश होती है
तू किसी सुब्ह सी आँगन में उतर आती है
कितने ही फ़ैसले किए पर कहाँ रुक सका हूँ मैं
तुझ को छुआ तो देर तक ख़ुद को ही ढूँडता रहा
आईने के आख़िरी इज़हार में
तुग़्यानी से डर जाता हूँ
हर एक साज़ को साज़िंदगाँ नहीं दरकार